سِرِ شُو نِدا مِدا کِل مَدتِقی که هَمسِرُم | مِم بِرِم به کِدخُدایی بِرِی گُل پِسِرُم | |
زِنِکَه مَیِم بِرِم تا خونه کِل مَدسِین | رختِ نَو دِ بَر کُنی نِه پِرهِنِ جِقن جِقن | |
جِرابِ سفید و کُوشِ طِبلِکی دِ پا کُنی | یَک کَمِ کِشمِش نِخود دِ جیبِ بِچِه ها کُنی | |
مَیُم اَمشو دی سِرا بِخیل و چِش تَنگ نِبِشی | شِلیِتِی گُل مِگُلی عروسیِتِر وَ پا کِشی | |
یَک کَمه سرخ و سفیدای دِ بُکِّت مِزِنی | دَستِ وَر او پیشونی لُک و پُلُکِت مِزِنی | |
صُحبِ زود بِرِی گُلُم به خونه ی فاطمه نِسا | اَبروهِیت بریک کُنی وُ دُورِ چِشمِتِر سیا | |
دِگَه کینه ی شُتُریر بَس از دِلِت بِدَر کُنی | زنی برارِتر و شوی خوهِرِتِر خِبَر کُنی | |
دو سه سالِس که مِگَن شاشِ حَسَن کف مِکُنَه | او دِشو مِزَه دِته الغِرِ بوم خَف مِکُنَه | |
بَس وَ دورِ هَم شِم و یَک فِکرِ بِهتَرِ کُنِم | پِسِرَه پیر شِدَه پاک اور دِگَه پی دَر کُنِم | |
بَس بِرِم بِرِی عروس کَمِه طِلایِم بِخِرِم | وَ یادِت بِشَه چَن کیسه حَنایِم بِخِرِم | |
کُوش مِیَه بِرِی عَمَه و خَلِه عروس | دو یه جُفتُم بِرِی خوهَر و مَه مِه عروس | |
غال حُقِه پولِ زیر خَکیِ ر بَس بِلاغ کُنِم | مَهرِ ای عروس خو سه مِن زمینِ باغ کُنِم | |
زَ مِگَه که مِردِکَه وَ ما مِدَن دُختِرَرِر | از حالِ وَشور مَکو ای پِسِرِی دیونَه رِر | |
دُختِرِ کِل مَدِسین کُجِه گُلُم و ما کُجِه | ما فقرا کُجِه، ای هَمَه بُروبیا کُجِه | |
او که از اِشتُر و از گُو و حَشَم گِلّه دِرَه | ماچِنِه، مَگِر که مِردُم دخترِ یله ی دِرَه | |
واز مگه کِل مَدتِقی غُصَه مَخور عَیالِ مو | اِی که یَک عمرِ بِدِی قُوتِ دِستِ بال ِمو | |
وَ خُدا اُمید مِبِندِم، خودِ کار مِشَه علاج | پِسِرِ ما نِه کَلَ نِه کور نِه شَل وُ نه کِلاج | |
حَرفِ مُفتِ تو عیال مور از خو بیزار مُکُنَه | ده نَفر مِگَن بِرِی کِل مَدسین کار مِکُنَه | |
پِسِرِ سالِمُ کاری که ای حرفا نِدِرَه | دِ دِل کِل مَدسین حرص و طمع جا نِدِرَه | |
ایر مِدونی که حسن دِ کوچَه دُختَرِر دیدَه | دُختِرَه دِ بَلونِی حوض خِی حسن مِخِندیدَه | |
وَر مِگَن دِ کوچه باغ خِی هم قِرار دِشتِیَن | صحبتِ وَعدَه وِعید دِ هَر کِنار دِشتِیَن | |
الغرض ای زِن و مَرد هر دو بِرَف خِنده کُنو | به سِرِی کِل مَدسین بِرِی جواب وَستُندِنو | |
بَعدِ خوش و بِش مِگَه کِل مَدسین پِس کو حَسَن | وَرگویِی بِیِد که تا هر دو کُنَن هَمِر پِسَن | |
حَسِنی بومَه دِ بیخِ کِربِلایی بِنِشَس | از خِجَلَت هِمِیِش دُکمه یَقِه یش دِمِبَس | |
چای بِیَوَو دُختِرَک، کُوشِی پُیِش صِدا مِکی | حَسِنی هِم اَرومَک از زیر چِش نِگا مِکی | |
حَسَنِر کِل مدسین مِگَه که مُندَه نِبِشی | خور تِیار کو که مَیی عَصایِ پیریُم بِشی | |
مِتونی بِرِی دِتَه بَیوو چِپونی کُنی | جُفتِ گووِر بِبُری به صحرا گُو رونی کُنی | |
مِتونی بِرِی سِرا سه چار چِلیکِ اُو کُنی | یا د ای چله ی تِموس بِری دو روز دِروکُنی | |
مِتونی باغ بِکولی یا کِه دِ صحرا کار کُنی | یا که از گوشه باغ خَرِر خِلَشَه بار کُنی | |
سَربُلَن کی حَسِنی مِگَه هَمِیش قِبول دِرُم | نوکرِ خونَه تِنُم اگر چه ضعف پول دِرُم | |
هَر چه وَرگویِی عمو، بِرِی شما کار مِکُنُم | یَک خَرِ که چیزِ نِی، دَه خَرِرِم بار مِکُنُم | |
به قول "فیاضی" ای کارا بِدِه بِستو دِرَه | هَر که طاووس مَیَه بَیِس تا هِندِستو بِرَه |
منبع: فیاضی، اسفندیار، ای خوش او روزا، چاپ اول: 1385، مشهد : نشر پشنگ
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