شعر محلی "بهار بومه" سروده آقای اسفندیار فیاضی درباره زیبایی های عید نوروز در روزگاران گذشته است.
بهار بومَه و گل، سور و ساتِ جور کُنِم | سِبَنج بیارِم و چَشم بخیلا کور کُنِم | |
بیا که دیو غُرور از وجود دور کُنِم | حسودی و طمع و کینه رِر دِ گور کُنِم | |
که سال نو شده و دل صفایِ نو مَیَه | جِراب و پِرهَه و کُش و قبای نو مَیَه | |
بِرَفت اَبرِ سیاه و دوبَرَه اَفتو شو | لباسِ کُهنَه وَدَر کِن که سال نُو، نو شو | |
سِرا و خُونَه و فَرش و گلیم جَرُو شو | عجب هوای قِشَنگِس دِلُم بِرِش اُو شو | |
دِ روی شاخه برویی شِکوفه های قِشّنگ | شده زمان خوشی وِختِ گیجِدِرَنگ گیجدَنگ | |
وَ دُورِ هم شِدَه اَمروز پیربزرگ و عمو | نِوَسَه عمّه و بی بی وُ خَله و خَلو | |
لباسِ نو دِ براشِن هَمَه زِ خُرد و کِلو | دِ مون خونَه مِپیچَه مِلَچِّ روبوسو | |
عجب صفا و عجب عیش و نوش هَس دیجا | بساطِ مهر و محبّت دوبَره شو وَر پا | |
عجب صِفایِ دِرَه صحراها و هم باغا | عجب نوای دره بُلبلا و هَم زاغا | |
عجب هوای مپیچَه دِمونِ فِناغّا | بدون دِیرَه مِرخصَه رعیّت و آقا | |
بیا که لعنت و نفری به چشم شور کُنَم | بچَر بیارم و اور زودِ خینسور کُنِم | |
بیا که گَرد و غبارِ دِلِر بتّکونِم | کتابِ مهر و محبت دوبَرَه وَرخونِم | |
زمانِ دیرَه زِنِم گاهِ خور بکِلچونم | و دورِ سفرَه شِم و هرچه هَس بِلُمبونِم | |
وَ دورِ هم شِم و یَک آش و جوشپِرِی بِپزِم | همی که سفره تِنُک شو هَمَه وَ پیش خِزِم | |
بیا که با دِبِندِم و سَر وَ کوه زِنَم | گُلای لَه لَه بچینِم علف گُروه زِنِم | |
به یادِ بچّگی ه غال مونج وَشور کُنِم | اگر کِه یَکِ بِکَن دو کِنار فِتور کُنِم | |
بیا کِه اَز غَمِّ و اَز غُصّها فِرار کُنِم | به دَر شِم و تِجیو دِ چشمِه سار کُنِم | |
دِمونِ باغ دو دیکِ پِلُو دِ بار کُنِم | بیم و باد دِبِندِم و بچَر سِوار کُنِم | |
دِ روی شاخَه نِگا بُلبلا وَ چَه چَه شو | صِدِیش هر که شِنی کیفِ کی وُ وَ بَه بَه شو | |
لباس نو شِده نِفسِر بیا تِمیز کُنِم | چاخان پاخان نِکُنِم تا خور عزیز کُنِم | |
بیا به توبه تنِر از گناه پاک کُنِم | ادایِ جشتِ گذشتَه ر دِ زیر خاک کُنِم | |
بیا سِتَم نِکُنِم عمر ما بقا نِدِره | زمِی و مالِ و مِنال هیچکُدُم وِفا نِدره | |
بِدون مِهر و وِفا زندگی صِفا نِدِرَه | اَدَم که پیر مِشَه چیزِ به جز عَصا نِدِرَه | |
نگاه هیکلِ "فیاض" کُنِم که پیر شِدِیِش | سِفید موی و سیَه چهره و فِقِیر شِدِیش |
منبع: فیاضی، اسفندیار، ای خوش او روزا، چاپ اول: 1385، مشهد : نشر پشنگ
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